23 सितंबर 2024 को 4 श्रम कोड के खिलाफ पैक मजदूरों-कर्मचारियों ने काला दिवस मनाया

23 सितंबर 2024 को 4 श्रम कोड के खिलाफ पैक मजदूरों-कर्मचारियों ने काला दिवस मनाया

Black Day against 4 Labor Codes

Black Day against 4 Labor Codes

Black Day against 4 Labor Codes: एक्टू की चंडीगढ़ इकाई ने केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए 4 मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने, सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण समाप्त करने, रोजगार में ठेकाकरण प्रथा समाप्त करने, भर्ती पर प्रतिबंध की नीति को रद्द करने आदि मांगों पर 23 सितम्बर 2024 को केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर आयोजित 'राष्ट्रव्यापी काला दिवस' मनाया। 

एक्टू से सम्बंधित पंजाब इंजीनियरिंग कालेज मैस वर्कर यूनियन से जुड़े कर्मचारियों ने देश व्यापी काला दिवस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

एक्टू के राष्ट्रीय पार्षद और पैक मैस वर्कर यूनियन के प्रधान सतीश कुमार ने बताया कि केंद्र की मोदी सरकार द्वारा थोपी गई इन चारों श्रम संहिताओं का उद्देश्य श्रमिकों पर फिर से कम्पनियों की गुलामी की स्थितियों को संस्थागत बनाना है। ताकि कामकाजी लोगों के लिए परिभाषित कार्य स्थितियों, न्यूनतम वेतन, कार्य के घंटे और सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ संगठित होने के अधिकार, सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार और हड़ताल करने के अधिकार के लगभग सभी वैधानिक अधिकारों को समाप्त किया जा सके। इन नई श्रम संहिताओं के कारण श्रमिकों के लिए ट्रेड यूनियनों में संगठित होना लगभग असंभव हो गया है। 

उन्होंने कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और भारत के संविधान के मुख्य सम्मेलनों 87 और 98 द्वारा प्रदान किए गए संघ और सामूहिक सौदेबाजी की स्वतंत्रता के श्रमिकों के अधिकार पर सीधा हमला है। यह कारपोरेट कंपनियों और उद्योगपतियों के हित में "ट्रेड यूनियन-मुक्त कार्यस्थल" सुनिश्चित करने की एक ज़बरदस्त साजिश है। याद रहे कि मोदी सरकार ने 29 श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में बदल दिया था, जिनमें- मजदूरी संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता शामिल हैं। मोदी सरकार संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बड़े हिस्से को, (असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की तो बात ही छोड़िए जहां कोई श्रम कानून लागू ही नहीं हैं) अधिकांश श्रम कानूनों के दायरे से बाहर करना चाहती है। 

यही नहीं मोदी सरकार ने 2015 से अब तक भारतीय श्रम संगठन की भी कोई बैठक नहीं बुलाई है। यही कारण है कि पूरा ट्रेड यूनियन आंदोलन इन चार श्रम संहिताओं का कड़ा विरोध कर रहा है और उन्हें खत्म करने की मांग कर रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) सहित किसानों और खेत मजदूरों के संगठन और प्रगतिशील लोगों के सभी वर्ग मजदूरों की इस मांग को अपना समर्थन दे रहे हैं। 

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